खुद पे भरोसा रखिये,
एक राह पकड़ के चलिए |
भूल- भुलैया है ये मन अपना,
इससे संभल के चलिए |
जब पांव भारी लगे,
तो कुछ देर ठहर के चलिए |
जीवन की घुड़ दौड़ में,
यूँ ही चलते चलिए |
नीरस न हो सफर अपना,
राह बदल कर चलिए|
हर पल एक नया सपना हो,
कुछ चाल यूँ चला करिए |
अनुभव की बानगी को समेटे चलिए,
मौके बेमोके उपदेश भी दिया करिए |
पर बात जो सच्ची और अच्छी लगे,
उसे ख़ुद की कसौटी पे परख के ही चला करिए |
न जाने कौन सा पल आखिरी हो,
हर पल को सिद्दत से जिया करिए|
इस प्रकार ख़ुद पे भरोसा रख कर,
हर पल से ख़ुद को पुरुस्कृत कीजिये|
बस कुछ चल रहा था मन में कि 'जीवन' जो की शायद बड़ी शिद्दत से नसीब हुई है
तो क्यों नहीं हर पल को जिया जाए| बस यही सोच रहा था, शब्द मन में आते गए
और बन गयी ये कविता| पता नहीं औरों के साथ क्या होता है लेकिन मेरे साथ तो यही
होता है कि मुझे पता नहीं होता कि अगलावाक्य क्या होगा |
इसीलिए तो मेरा मानना है कि हर चीज नियत है|
उसे जो करना होगा वो करेगा|
कुँवर
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