शनिवार, 5 सितंबर 2009

कितने कल के बाद

कितने कल के बाद ...

देखो "आज " आया |

संग लग ले ---

क्या पता फिर आए न आए |

मीरा को गिरधर जी मिले थे

इसी आज में |

अर्जुन का द्वंद छठा था

इसी आज में |

अनुपम वेला ---

संधि वेला ------(ब्र्ह्ममुहुर्त की वेला )

भी मिलती है ---

इसी आज में |

शंकर की ये 'मोक्ष 'हो --

या फिर बुद्ध की 'निर्वाण '--

या फिर पातंजल का 'कैवल्य '--

ये सब मिलते हैं इसी आज में |

कितने कल के बाद--

देखो "आज " आया |

जो भी है बो "आज "है भैया--
कल तो --
धोखे की पहली किरण है|

जो भी है बो आज है भैया ---
बस आज है भैया ---

चाहे जितना भी नुरा-कुश्ती कर ले ये मेरी बुद्धि मेरे मन से लेकिन तब तक कुछ नही पायेगा जब तक आज को जीना न सिख ले सम्पूर्णता से |कुछ मिलने बाला नही ---

कुंवर -------

7 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी सुंदर कविता लिखी आपने .. इसी आज में ,
    जल्‍दी जल्‍दी मैं टिप्‍पणी कर दूं .. इसी आज में !!

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  2. बहुत उम्दा विचार । सुन्दर रचना ।

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  3. हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ। कविता बहुत सुन्दर है।

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  4. अच्छी रचना है । धोखा की जगह धोखे कर लें ।

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