कितने कल के बाद ...
देखो "आज " आया |
संग लग ले ---
क्या पता फिर आए न आए |
मीरा को गिरधर जी मिले थे
इसी आज में |
अर्जुन का द्वंद छठा था
इसी आज में |
अनुपम वेला ---
संधि वेला ------(ब्र्ह्ममुहुर्त की वेला )
भी मिलती है ---
इसी आज में |
शंकर की ये 'मोक्ष 'हो --
या फिर बुद्ध की 'निर्वाण '--
या फिर पातंजल का 'कैवल्य '--
ये सब मिलते हैं इसी आज में |
कितने कल के बाद--
देखो "आज " आया |
जो भी है बो "आज "है भैया--
कल तो --
धोखे की पहली किरण है|
जो भी है बो आज है भैया ---
बस आज है भैया ---
चाहे जितना भी नुरा-कुश्ती कर ले ये मेरी बुद्धि मेरे मन से लेकिन तब तक कुछ नही पायेगा जब तक आज को जीना न सिख ले सम्पूर्णता से |कुछ मिलने बाला नही ---
कुंवर -------
इतनी सुंदर कविता लिखी आपने .. इसी आज में ,
जवाब देंहटाएंजल्दी जल्दी मैं टिप्पणी कर दूं .. इसी आज में !!
बहुत उम्दा विचार । सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंYun hi likhte rahen.Shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ। कविता बहुत सुन्दर है।
जवाब देंहटाएंHave a happy and prosperous 'Hindi Day' !
जवाब देंहटाएं:)
अच्छी रचना है । धोखा की जगह धोखे कर लें ।
जवाब देंहटाएंachhi kavita... shandar... kal ke baad aaya aaj.
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