
अब दोस्त उठो , संहार करो ।
बन वीर , शत्रू पे वार करो ।।
शत्रू जो निज के अन्दर है ।
कहता खुद को, नियति का बन्दर है ।।
विश्व जीत सकेंगे हम ।
जब अंतस के शत्रू जीतेंगे ।।
अब दोस्त उठो , संहार करो ।
बन वीर , शत्रू पे वार करो ।।
जब आसक्त भाव को त्यागेंगे ।
तब ही ये शत्रू भागेंगे ।।
नियति ने बहुत रुलाया है ।
अब अपनी नियति गढ़ डालेंगें ।।
अब दोस्त उठो , संहार करो ।
बन वीर , शत्रू पे वार करो ।।
........कुँवर.......
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