बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

" ताकि तुम चैन की नींद सो सको "

  मैं पूरी रात जागता  रहा , 
ताकि तुम चैन की नींद  सो सको ।

मैंने सारा दोष अपने उपर लिया , 
ताकि जग तुम्हें कोई दोष न दे ।

जब दुआ माँगने की बारी आई,
तो तुम्हारे लिए सारी खुशियाँ -
नगद माँग आया ।

और अपने लिए  खुशियों के रूप में,
'नियति' वो भी उधार संग लाया ।

क्या कुछ और भी कर सकता हूँ ,
मैं तुम्हारे लिए ?

ऐसा कभी नहीं होता की किसी के जीवन में ये मैं रूपी सहयोगी न हो, ये अवश्य मिलते हैं कभी न कभी।
कभी माँ के रूप में तो, कभी पिता के रूप में, कभी दोस्त के रूप में, कभी हमसफ़र के रूप में, कभी गुरु के रूप में,
तो कभी अन्य जानी - पहचानी रिश्तों  के रूप में।

हममें से कुछ तो उनका सत्कार करते हैं और कुछ नादानीवश उनका तिरस्कार करते हैं। मेरी याचना उन महानुभावों  से है की कम से कम अपने सहयोगी का तो सम्मान करें।

                                                                                                                                                    कुँवर  

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