![]() |
Add caption |
ये इम्तिहान की घडी है,
अपने ही चिता में,
आग लगाने की घड़ी है ।
ताकि एक बार फिर,
तुम्हारे हड्डियों से,
देवगण वज्र बना सके ।
कर सके दुष्टों का दलन,
जग की सुख, सम्रधि और शान्ति के लिए ।
हाँ तुम्हें अपनी ही चिता में, आग लगानी पड़ेगी ।
करना परेगा खुद को भस्मीभूत,
मानवता के लिए - जग के लिए ।
उस आस और विश्वास के लिए,
जो रचियता ने तुम्हें रचते हुए सोचा था ।
होना पड़ेगा निर्लिप्त ,
कुछ मोह के बंधनों से।
जगाने पड़ेंगें वो 'अनासक्त भाव ',
जो सार है गीता का ।
त्यागना होगा परिवर्तनशील जग में,
अपरिवर्तित सुखाभास को ।
हाँ लगानी पड़ेगी तुम्हें,
अपनी ही चिता में आग ।
ताकि जाने से पहले,
आने का मर्म समझ सको ।
और कर सको साकार, उस उद्देश्य को,
जो रचियता ने तुम्हे रचते हुए सोचा था ।
ये इम्तिहान की घडी है,
अपने ही चिता में,
आग लगाने की घड़ी है ।
ताकि एक बार फिर,
तुम्हारे हड्डियों से,
देवगण वज्र बना सके ।
कर सके दुष्टों का दलन,
जग की सुख, सम्रधि और शान्ति के लिए ।
हाँ तुम्हें अपनी ही चिता में, आग लगानी पड़ेगी ।
करना परेगा खुद को भस्मीभूत,
मानवता के लिए - जग के लिए ।
उस आस और विश्वास के लिए,
जो रचियता ने तुम्हें रचते हुए सोचा था ।
होना पड़ेगा निर्लिप्त ,
कुछ मोह के बंधनों से।
जगाने पड़ेंगें वो 'अनासक्त भाव ',
जो सार है गीता का ।
त्यागना होगा परिवर्तनशील जग में,
अपरिवर्तित सुखाभास को ।
हाँ लगानी पड़ेगी तुम्हें,
अपनी ही चिता में आग ।
ताकि जाने से पहले,
आने का मर्म समझ सको ।
और कर सको साकार, उस उद्देश्य को,
जो रचियता ने तुम्हे रचते हुए सोचा था ।
ताकि जाने से पहले,
जवाब देंहटाएंआने का मर्म समझ सको ।
और कर सको साकार उस उद्देश्य को,
जो रचियता ने तुम्हे रचते हुए सोचा था ।
.....बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
कैलाश सर ब्लॉग से जुड़ने के लिए आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंऔर हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
यहाँ पर आपकी उपस्थिती मेरे लिए प्रेरणीय है।
त्यागना होगा परिवर्तनशील जग में
जवाब देंहटाएंअपरिवर्तित सुखाभास को ।- बेशक
हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआभार ---
वाह, बहुत खूब। अच्छी रचना प्रस्तुत की।
जवाब देंहटाएं