क्या बात है महादेव
मेरे कंठ नीले नहीं होते
हृदय पीले नहीं होते ।
हर पल मुझे भी है
विष पीना पड़ रहा ।
विष पान कर के भी
हृदय में प्रेम का
संचार है होता।
हे देव,
मैं विषैला क्यूँ नहीं होता ?
लिखता रहता हूँ, पर व्यस्तता इसे ब्लॉग पर रखने का अवसर कम ही देती है ।
हाँ इसकी अनुभूति मुझे भी होती है कि पीड़ा, आनंद के वनिस्पत अधिक टिकाऊ होती है जब हृदय इसकी अनुभूति करता है तो जो भाव शब्दों का रूप लेता है वह किसी एक हृदय की अभिव्यक्ति
नहीं होती है। यकीन मानिये कभी न कभी ये अभिव्यक्ति आपको अपनी ही लगेगी और यही मेरी इस
रचना कि सार्थकता होगी ।
एक यक्ष प्रश्न जिसका उत्तर भी स्वयं अपने अन्दर ढूँढना होगा..बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंजी सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएं