माटी है वो कुम्हार का
नित जल संग मिलने को तैयार है,
पीटने को तैयार है,
वो तपने को तैयार है |
उफ़ ना बोले साथ ना छोडे,
विश्वास है वो देगा एक आकार ,
अपना भी जीवन होगा साकार|
गर साथ वो छोड़े, आस वो तोडे,
तो यूँ ही पड़ा रह जाएगा ,
राह का रोड़ा कहलायेगा|
'कुंवर'
मेरी ये कविता मेरे उन दोस्तों के लिए है
जो कहते हैं की बहुत कष्ट है जीवन में ,
यदि जीवन को आकार और साकार की प्राप्ति करनी है
तो माटी कुम्हार का बनना ही पड़ेगा |
नित जल संग मिलने को तैयार है,
पीटने को तैयार है,
वो तपने को तैयार है |
उफ़ ना बोले साथ ना छोडे,
विश्वास है वो देगा एक आकार ,
अपना भी जीवन होगा साकार|
गर साथ वो छोड़े, आस वो तोडे,
तो यूँ ही पड़ा रह जाएगा ,
राह का रोड़ा कहलायेगा|
'कुंवर'
मेरी ये कविता मेरे उन दोस्तों के लिए है
जो कहते हैं की बहुत कष्ट है जीवन में ,
यदि जीवन को आकार और साकार की प्राप्ति करनी है
तो माटी कुम्हार का बनना ही पड़ेगा |
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