शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

मंथन

फिक्र इसकी न करें कि चलना है ,
फिक्र इसकी करें कि किधर चलना है|

चला तो आपको प्रक्रति देगी,
परन्तु हर मोड़ पे विस्मृति देगी|

विस्मृति कि किधर चलना है,
और कब संभलना है|

लड़ाई अपनी विस्मृति से करना है,
और चलते- चलते ही हर मोड़ पे संभलना है|

इस फिक्र को चिंतन समझिये,
हर मोड़ पे बुद्धि से विचार मंथन समझिये|

मंथन से मूलतः दो भाग ही तो मिलता है ,
अच्छा - बुरा वहां साफ - साफ दिख पड़ता है|

अच्छाई को पकड़ते चलिए ,
कदम दर कदम खुद को उठाते चलिए|

जब भी जीवन में दिशा पे सवाल उठे,
तो यूं ही विचार मंथन कीजिये|

पुनः मिले दो भाग में से,
अच्छे को पकड़ते चलिए|

इस प्रकार उस ऊंचाई कि तरफ ,
खुद को उठाते
चलिए|

वो ऊंचाई, जो कि हमेशा एक आदर्श
रहा,
क्योंकि उससे से ऊँचे का कोई प्रमाण नहीं|

ये जो दिशा कि फिक्र करना है,
हर मोड़ पे संभलना है |

संभलने से वास्ता चिंतन का है,
चिंतन का रिश्ता विचार मंथन से
है|

इसे ही जीवन का सूत्र वाक्य समझिये,
गर ये सूत्र आपने पास है तो,
जीवन कि हर समस्याओं का समाधान,
अपने पास समझिये|

इसलिए किधर चलना
है,
ध्यान में रख कर चलिए|

ध्यान रखना अपनी जिम्मेदारी है,
नव वर्ष में अपनी जिम्मेदारी,
अपने कन्धों पे उठा के
चलिए|



इसी भाव के साथ आप सब को नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें|

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया चिंतन !!
    आपके और आपके परिवार के लिए भी नया वर्ष मंगलमय हो !!

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  2. This GUY has amazing thinking.If u will read his poem carefully, if u will find a hungry artist expressing himself in the quest of superconsciousness.With his poem you will find yourself taking dip in ocean of FACTS.which will always drive you to certainity.

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  3. फिक्र इसकी न करें कि चलना है ,
    फिक्र इसकी करें कि किधर चलना है|

    Kya baat kahi aapne!

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  4. Thanks ki Varshon bad bhi ye rachna aapke dwara saraha gaya....Hope ki phir se koochh likhoon...

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  5. aap jb likhe hai to apka har words bolta hai....hmesha likhte rahiye.........

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