कुछ दिनों पहले, बहुत दिनों के बाद, भाव फिर से छलकना शुरू हुआ तो हाथों ने लेखनी थाम ली और मन ने कहा कि मैं लिखूंगा इक बार फिर लिखूंगा ......
परिणाम आपके सामने है :-----
<<<समर्पण >>>
हे ईश्वर, अर्पित करता हूँ ...
समर्पित करता हूँ,
सर्वस्व अपने आप को ...
कुछ भी नहीं,
इस नश्वर जग में...
जो दे सके सुकूँ,
व्यथित मन को ...
जग हजारों कार्य के ,
हजारों कारण निकाल लेते हैं ...
लेकिन आखिर इस विधा से,
क्या पा लेते हैं ...
अब तो करता हूँ,
मन का अर्पण और समर्पण ...
एक मात्र उस सत्ता को,
जिसे अंतस की आवाज ईश्वर कहते हैं ...
हो सकता है किसी और का अंतस,
उसे कुछ और कहता हो ...
लेकिन है वही इक मात्र कारण,
इस विश्व रूपी कार्य का...
परिणाम आपके सामने है :-----
<<<समर्पण >>>
हे ईश्वर, अर्पित करता हूँ ...
समर्पित करता हूँ,
सर्वस्व अपने आप को ...
कुछ भी नहीं,
इस नश्वर जग में...
जो दे सके सुकूँ,
व्यथित मन को ...
जग हजारों कार्य के ,
हजारों कारण निकाल लेते हैं ...
लेकिन आखिर इस विधा से,
क्या पा लेते हैं ...
अब तो करता हूँ,
मन का अर्पण और समर्पण ...
एक मात्र उस सत्ता को,
जिसे अंतस की आवाज ईश्वर कहते हैं ...
हो सकता है किसी और का अंतस,
उसे कुछ और कहता हो ...
लेकिन है वही इक मात्र कारण,
इस विश्व रूपी कार्य का...
keep going... :)
जवाब देंहटाएंSure...
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